Sher Shah Suri History In Hindi
शेर शाह सूरी का इतिहास | Sher Shah Suri History In Hindi
शेर शाह सूरी का
इतिहास / Sher Shah Suri History In Hindi
शेर शाह सूरी उत्तरी भारत के सुर
साम्राज्य के संस्थापक थे, जिनमे उनकी राजधानी दिल्ली भी शामिल है. 1540 मे शेर शाह ने
मुघल साम्राज्य को अपने हातो में लिया था. 1545 में उनकी अकस्मात् मृत्यु के बाद, उनका बेटा
उत्तराधाकारी बना. पहले वह मुग़ल आर्मी के सेनापति बने और फिर बाद में वे बिहार के
शासक के रूप में उठ खड़े हुए. 1537 में, जब बाबर का बेटा
हुमायूँ अभियान पर था तब शेर खान ने बंगाल राज्य को हथिया लिया था और वहा उसने सुर
साम्राज्य स्थापित किया. शेर शाह ने खुद को हर मोड़ पर सही साबित किया, वे एक सफल
शासक साबित हुए और एक वीर और साहसी सेनापति कहलाये. उनके विशाल और समृद्ध
साम्राज्य को बाद में मुग़ल शासक हुमायूँ के बेटे अकबर ने हथिया
लिया.
1540 से 1545 के अपने पाच साल के शासन काल में, उन्होंने अपने
साम्राज्य में नयी सैन्य शक्ति का निर्माण किया था, और साथ ही पहले रूपया का भी प्रचलन उन्होंने
शुरू किया और भारतीय पोस्टल विभाग को भी उन्होंने अपने शासनकाल में विकसित किया.
बाद में उन्होंने हिमायुं दिना पनाह शहर को विकसित कर उसका नाम शेरगढ़ रखा और
इतिहासिक शहर पाटलिपुत्र का नाम बदलकर पटना रखा. बाद में ग्रांट ट्रंक रोड को
चित्तागोंग से विस्तृत करते हुए रास्तो को पश्चिमी भारत से अफगानिस्तान के काबुल
तक ले गये और देशो को रास्ते से जोड़े रखा.
शेर शाह सूरी
का प्रारंभिक इतिहास – Sher Shah Suri In Hindi
शेर शाह सूरी का जन्म फरीद खान के
नाम से भारत के बिहार प्रान्त के सासाराम ग्राम में हुआ था. उनका उपनाम सूरी उनके
प्राचीन ग्राम सुर से लिया गया था. जब वे युवावस्था में थे तभी उन्होंने एक शेर का
शिकार किया था और तबसे उनका नाम शेरशाह रखा गया. उनके दादा इब्राहीम खान सूरी
नारनौल के प्रसिद्ध जागीरदार थे और कुछ समय के लिए उन्होंने दिल्ली के शासक का भी
प्रतिनिधित्व भी किया था. आज भी नारनौल में इब्राहीम खान सूरी का स्मारक बना हुआ
है. तारीख-खान जहाँ लोदी ने भी इस बात को स्पष्ट किया था. शेरशाह पश्तून सुर
समुदाय से संबंध रखते थे (इतिहास में पश्तून अफगानी के नाम से भी जाने जाते थे).
उनके दादा इब्राहीम खान सूरी एक साहसी योद्धा थे.
अपने बेटे हसन खान के साथ शेर शाह के पिता
अफगानिस्तान से हिंदुस्तान वापिस आये, वे जिस जगह पर आये थे उस जगह को अफगान भाषा में “शर्गरी” और मुल्तान
भाषा में “रोहरी” कहते थे. वे
जहा रहते थे वहा एक ऊँची पर्वतश्रेणी थी, जो गुमल के किनारे पर स्थित था. बाद में उन्होंने मुहब्बत
खान सुर, दौड़ साहू-खैल
की सेवा की जिन्होंने शेर शाह को हरियाणा और बह्कला की जागीर दी. और बाद में वे
बज्वारा के परगना में रहने लगे.
एक शानदार रणनीतिकार शेर शाह ने खुद
को सक्षम सेनापति के साथ ही एक प्रतिभाशाली प्रशासक भी साबित किया. इतिहास में तीन
धातुओ की सिक्का प्रणाली जो मुघलो की पहचान बनी वो शेरशाह द्वारा शुरू की गयी थी.
साथ ही पहला रूपया शेरशाह के शासन में जारी हुआ था जो आज के रूपया का अग्रदूत है.
रूपया आज भारत,
पकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका
इत्यदि देशो में राष्ट्रिय मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है.
22 मई 1545 में चंदेल राजपूतो के खिलाफ लड़ते हुए शेरशाह सूरी की
कालिंजर किले की घेराबंदी के दौरान एक बारूद विस्फोट से मौत हो गयी. शेरशाह ने
अपने जीवनकाल में ही अपने मकबरे का काम शुरू करवा दिया था. उनका गढ़नगर सासाराम
स्थित उनका मकबरा (Sher Shah Suri Tomb) एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है.
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